समान कार्य के लिए समान वेतन के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बावजूद प्राप्त सूचनाएं इस तरह हैं कि जैसे गांव में लगी हुई आग मेरे झोपड़े की ओर बढती दिखाई देती है ।हजारों शिक्षकों के उत्कृष्ट कार्य के साथ लाखों शिक्षक कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं परन्तु उसी भीड़ में कुछ शिक्षक के रूप में छिपे हुए बहुरूपिए शिक्षक समाज को बदनाम करने के किसी भी प्रयास को नहीं छोड रहे हैं ।यह बात अलग है कि ऐसे लोगों का प्रभाव अधिक देर तक नहीं रहता है ।
वर्षों पहले उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा मित्र की तैनाती के नाम पर एक अभिनव प्रयोग किया गया था ।सरकारों को इससे वित्तीय राहत प्राप्त हुई थी ।और जिनकी तैनाती हुई थी उन्होंने अपने बेहतर प्रदर्शन के द्वारा स्वयं को साबित भी किया था ।यह बात अलग है कि समय -समय पर सरकारों के रवैये, न्यायालयों के फैसले और कानून की पेचीदगी के कारण यह संवर्ग हतोत्साहित है । शुरुआती दौर में इस प्रकार के प्रयोग के परिणामों एवं जनगण मन की प्रतिपुष्टि से सरकारें उत्साहित थीं । तथा इस संवर्ग में समान कार्य के लिए समान वेतन के साथ नियमित होने की उम्मीद जगी थी जबकि नियमित शिक्षक संवर्ग आशंकित था , उन्हें लगता था कि इस तरह धीरे-धीरे उनके संवर्ग को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है ।
कुछ वर्ष पहले उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कला, व्यायाम, कृषि और क्राफ्ट जैसे विषयों के पूर्णकालिक नियत मानदेय पर अनुदेशकों की नियुक्ति की गई थी ।यह संवर्ग भी राजनैतिक घोषणाओं और सरकारी असफल वित्तीय प्रबंधन के चलते उहापोह की स्थिति में है ।
इसी प्रकार कस्तूरबा गांधी विद्यालयों में पूर्ण और अंशकालिक शिक्षकों की तैनाती भी एक विकल्प तलाशने का अभ्यास है ,जिसमें पूर्णकालिक का अर्थ चौबीस घंटे की ड्यूटी से है ।जहां जिम्मेदारी के घंटे अधिक हैं और वेतन कम ।
जनपद ललितपुर ( उत्तर प्रदेश ) में निवर्तमान जिलाधिकारी महोदय ने सत्र 2019 -20 के लिए जनपद के एकल और बन्द विद्यालयों में शैक्षिक सहयोग के उद्देश्य से एक अभिनव प्रयास ' गार्गी ' नाम से शुरू किया है जिसके अंतर्गत स्थानीय पढी लिखी महिलाओं / बालिकाओं में से किसी एक का चयन किया गया है । जिसे समुदायिक सहभागिता के अंतर्गत केवल एक हजार रुपए प्रतिमाह प्रोत्साहन स्वरूप प्रदान किया जाएगा । शुरुआती निर्धारण के बाद इस योजना के अंतर्गत दो हजार देने का फैसला किया गया है ।
उपरोक्त सभी प्रयास शासन की नीतियों , जन आकांक्षाओं और जन व्यवहार से निर्देशित हैं ।जहां राष्ट्र राज्य के निर्णयों पर व्यक्तिगत हितों की छाप स्वभाविक है ।और जहां समस्त पक्षकार असहाय नजर आते हैं ।
अभी कुछ समय से गैर सरकारी संस्थाओं की सक्रियता से नियमित शैक्षिक संवर्ग में फिर से शंकाएं सिर उठाने लगी हैं ।उनकी शंकाएं गुरु और राष्ट्र के वैश्विक गुरु की गरिमा को धूमिल करने से जुड़ी हुई हैं अथवा यह शंकाएं वैसी ही हैं कि जब गांव में आग लगी है तो मेरे झोपड़े का क्या होगा ? एक बात स्पष्ट है कि जागरूक लोगों से ही प्रतिक्रिया की अपेक्षा की जा सकती है अन्यथा हालत यह है कि शिक्षक समुदाय शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन धंसा कर केवल अपनी और अपने बच्चों की चिंता में मगन है ।और जिन्हें राष्ट्र की चिंता है उन्हें घुन खा रहा है ।
डूबते को एक दो हजार रुपए तिनके का सहारा है, यह जानते हुए भी कि तिनका उसका भार नहीं उठा सकता है परंतु यह आशा तो पैदा करता है , सपने देखने को प्रेरित तो करता है कि हो सकता है कि यह एक सूत्र हो उसका जो लाखों लोगों के भार को उठा रहा है । यह आइना नहीं है यह आवश्यकता है सभी की , लेकिन यदि इसे आइना मान लिया जाए तो कल्याण हो जाए । यह प्रयास नहीं है किसी खींची गई लाइन को छोटा करने का, यह तो स्वयं को साबित करने की कोशिशें हैं लेकिन यदि ऐसा प्रयास मान भी लिया जाए तो भला हो जाए ।
हम अक्सर आइना में देखकर अपने चेहरे को ठीक करते हैं और आदमकद आइने पूरी वेशभूषा को ठीक करने में मददगार साबित होते है । आप कभी थाना या जवानों के ट्रेनिंग सेंटर आदि को देखें जहां आदमकद आइने लगे होते हैं और उन पर लिखा होता है, ' मेरी ड्रेस ठीक है ' । यह निश्चित तौर पर केवल चेहरे मोहरे और वेशभूषा को ठीक करने में सहायता प्रदान करते हैं। बदलते परिदृश्य में ऐसे आइने की आवश्यकता है जिसे देखकर अपने कार्य को ठीक किया जा सके। इस तरह के आइने बाजार में मिलना मुश्किल है यह तो हो सकते हैं आपके आदर्श, आपके प्रेरणा स्रोत , आपके संस्कार जिनमें झांककर अपने कार्य को ठीक किया जा सकता है।
ताज्जुब यह है कि योग्यतम आशंकित हैं। आशंकाओं को त्याग कर उठो ! स्वयं को आइना बनाओ ! और उठो ! एक नयी लाइन खींच दो ! पुराना आइना और पुरानी लाइन धुंधला जाती है ।
जय शिक्षक : जय हिंद